अथर्ववेद (कांड 18)
प्र के॒तुना॑बृह॒ता भा॑त्य॒ग्निरा रोद॑सी वृष॒भो रो॑रवीति।दि॒वश्चि॒दन्ता॑दुप॒मामुदा॑नड॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षो व॑वर्ध ॥ (६५)
यह अग्नि देव धूम रूपी महान अंडे के द्वारा बहुत दीप्त होते हैं. स्वर्ग और पृथ्वीवासियों की कामनाओं की वर्षा करने वाले अग्नि महान शब्द करते हैं. ये अग्नि आकाश से भी ऊपर व्याप्त होते हैं. उस के बाद जलों के प्रदेश में महान हो कर वृद्धि प्राप्त करते हैं. (६५)
This agni god is very bright with the great egg of smoke. Agni, which showers the wishes of heaven and earth, makes great words. These agnis pervad above the sky. After that, they get great growth in the region of waters. (65)