हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 18.4.51

कांड 18 → सूक्त 4 → मंत्र 51 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 18)

अथर्ववेद: | सूक्त: 4
इ॒दं पि॒तृभ्यः॒प्र भ॑रामि ब॒र्हिर्जी॒वं दे॒वेभ्य॒ उत्त॑रं स्तृणामि । तदा रो॑ह पुरुष॒ मेध्यो॒भव॒न्प्रति॑ त्वा जानन्तु पि॒तरः॒ परे॑तम् ॥ (५१)
संस्कार करने वाले पुरुष! पितरों और देवताओं के जीवन की कामना करता हुआ मैं कुशों को फैलाता हूं. हे मृत पुरुष! तू योग्य होता हुआ इन कुशाओं पर बैठा. पितर यहां से गए हुए तुझ प्रेत को इन कुशों पर बैठने की अनुमति दें. (५१)
Men who perform rites! Wishing for the lives of ancestors and gods, I spread the Kushas. O dead man! You sat on these chairs, being worthy. Father, allow your ghost from here to sit on these kushas. (51)