अथर्ववेद (कांड 19)
इ॒दमु॒च्छ्रेयो॑ऽव॒सान॒मागां॑ शि॒वे मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॑भूताम् । अ॑सप॒त्नाः प्र॒दिशो॑ मे भवन्तु॒ न वै त्वा॑ द्विष्मो॒ अभ॑यं नो अस्तु ॥ (१)
मैं ने श्रेष्ठ फल के रूप में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है. द्यावा और पृथ्वी मुझे उत्तम फल देने वाले हों. पूर्व आदि उत्तम दिशाएं मेरे लिए शत्रु रहित हों. हे विरोधी! मैं तुझ से द्वेष न करूं, इसलिए मुझे अभय प्राप्त हो. (१)
I have achieved my goal as the best fruit. May the world and the earth give me the best fruit. The best directions like east etc. should be enemy-free for me. O opponent! I should not hate you, so may I have protection. (1)