हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 19.24.5

कांड 19 → सूक्त 24 → मंत्र 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 24
ज॒रां सु ग॑च्छ॒ परि॑ धत्स्व॒ वासो॒ भवा॑ गृष्टी॒नाम॑भिशस्ति॒पा उ॑ । श॒तं च॒ जीव॑ श॒रदः॑ पुरू॒ची रा॒यश्च॒ पोष॑मुप॒संव्य॑यस्व ॥ (५)
हे शांति प्रयोक्ता! तुम वृद्धावस्था को प्राप्त करो. तुम इस वस्त्र को धारण करो. तुम गायों को हिंसा के भय से बचाने वाले बनो. तुम अनेक प्रकार के पुत्रपौत्रों को प्राप्त करने वाली सौ शरद्‌ ऋतु.ओं तक जीवित रहो. तुम धन और पुष्टि धारण करो. (५)
O peace user! You attain old age. You wear this cloth. You be the protector of cows from the fear of violence. May you live to a hundred autumns receiving many kinds of sons and grandsons. You hold wealth and confirmation. (5)