हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 19.35.5

कांड 19 → सूक्त 35 → मंत्र 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 35
य ऋ॒ष्णवो॑ दे॒वकृ॑ता॒ य उ॒तो व॑वृ॒तेऽन्यः । सर्वां॒स्तान्वि॒श्वभे॑षजोऽर॒सां ज॑ङ्गि॒डस्क॑रत् ॥ (५)
देवों के द्वारा बनाए हुए जो हिंसक पुरुष हैं तथा मनुष्य आदि के द्वारा प्रेरित जो बाधक हैं, उन सभी भेषजों अर्थात्‌ ओषधियों को जंगिड़ मणि शक्तिहीन करे. (५)
The violent men who are created by the gods and those who are motivated by human beings etc. should be made powerless by the warriors, the jewel of war. (5)