हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 50
अध॑ रात्रि तृ॒ष्टधू॑ममशी॒र्षाण॒महिं॑ कृणु । अ॒क्षौ वृक॑स्य॒ निर्ज॑ह्या॒स्तेन॒ तं द्रु॑प॒दे ज॑हि ॥ (१)
हे रात्रि! जिस सर्प की धुएं के समान सांस कष्टदायक है, उस का सिर काट दो. भेड़िए को नेत्रहीन कर के वृक्ष के नीचे मार डालो. (१)
O night! Cut off the head of a snake whose smoke-like breath is painful. Blindly kill the wolf under the tree. (1)

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 50
ये ते॑ रात्र्यन॒ड्वाह॑स्ती॒क्ष्णशृ॑ङ्गाः स्वा॒शवः॑ । तेभि॑र्नो अ॒द्य पा॑र॒याति॑ दु॒र्गाणि॑ वि॒श्वहा॑ ॥ (२)
हे रात्रि! तुम्हारे वाहन जो नुकीले सींगों वाले तथा अत्यधिक शीघ्र चलने वाले बैल हैं, उन के द्वारा हमें सभी रात्रियों के सभी अनर्थो से पार कराओ. (२)
O night! Make us overcome all the evils of all nights by your vehicles, which are fast-horned and very fast moving bulls. (2)

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 50
रात्रिं॑रात्रि॒मरि॑ष्यन्त॒स्तरे॑म त॒न्वा व॒यम् । ग॑म्भी॒रमप्ल॑वा इव॒ न त॑रेयु॒ररा॑तयः ॥ (३)
सभी रात्रियों में गमन करते हुए हम शरीर से पुनः पौत्र आदि के साथ रात्रि को पार करें. हमारे शत्रु नदी पार करने के साथ नाव आदि से हीन पुरुषों के समान रात्रि को पार न कर पाएं अर्थात्‌ रात्रि में ही नष्ट हो जाएं. (३)
While traveling in all the nights, we should cross the night with the grandson etc. again from the body. Our enemies cannot cross the night like men inferior to boats etc. with crossing the river, that is, they should be destroyed in the night itself. (3)

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 50
यथा॑ शा॒म्याकः॑ प्र॒पत॑न्नप॒वान्नानु॑वि॒द्यते॑ । ए॒वा रा॑त्रि॒ प्र पा॑तय॒ यो अ॒स्माँ अ॑भ्यघा॒यति॑ ॥ (४)
जिस प्रकार सवां अन्न पकने पर गिरता हुआ सारहीन हो जाता है तथा बिलकुल नहीं बचता, हे रात्रि! जो हमारे प्रति हिंसा करने की इच्छा रखता है, उसे उसी प्रकार गिरा दो. (४)
Just as the food falls when it is cooked and becomes immaterial and does not survive at all, O night! Whoever wants to commit violence against us, bring him down in the same way. (4)

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 50
अप॑ स्ते॒नं वासो॑ गोअ॒जमु॒त तस्क॑रम् । अथो॒ यो अर्व॑तः॒ शिरो॑ऽभि॒धाय॒ निनी॑षति ॥ (५)
जो चोर हमारे वस्त्र, गायें तथा बकरियां ले जाना चाहते हैं तथा जो हमारे घोड़ों के सिरों को रस्सी से बांध कर ले जाना चाहते हैं, उन्हें दूर भगाओ. (५)
The thieves who want to take away our clothes, cows and goats and those who want to take away the heads of our horses with a rope, drive them away. (5)

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 50
यद॒द्या रा॑त्रि सुभगे वि॒भज॒न्त्ययो॒ वसु॑ । यदे॒तद॒स्मान्भोज॑य॒ यथेद॒न्यानु॒पाय॑सि ॥ (६)
हे सौभाग्यशालिनी रात्रि! आज जो चोर स्वर्ण आदि धातुओं का अपहरण करते हैं, उस धन को हमारे उपभोग का साधन बनाओ. इस से शत्रु द्वारा छीने गए हमारे घोड़े, हाथी भी हमें प्राप्त हो जाएं. (६)
O good lucky night! Today, the thieves who kidnap metals like gold, make that money a means of our consumption. From this, we should also get our horses, elephants snatched by the enemy. (6)

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 50
उ॒षसे॑ नः॒ परि॑ देहि॒ सर्वा॑न्रात्र्यना॒गसः॑ । उ॒षा नो॒ अह्ने॒ आ भ॑जा॒दह॒स्तुभ्यं॑ विभावरि ॥ (७)
हे रात्रि! हम सभी स्तुतिकर्ताओं तथा पशुओं, पुत्रों, मित्र आदि को रक्षण के लिए उषा को प्रदान करो. हे विभावरी! उषः हम सब को दिन प्रदान करे तथा दिन पुनः तुम्हें प्राप्त करे. (७)
O night! Give usha to protect all of us praisors and animals, sons, friends etc. O Vibhavari! May you give us all the day and receive the day back to you. (7)