हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
स्तु॒ता मया॑ वर॒दा वे॑दमा॒ता प्र चो॑दयन्तां पावमा॒नी द्वि॒जाना॑म् । आयुः॑ प्रा॒णं प्र॒जां प॒शुं की॒र्तिं द्रवि॑णं ब्रह्मवर्च॒सम् । मह्यं॑ द॒त्त्वा व्र॑जत ब्रह्मलो॒कम् ॥ (१)
वेद का अध्ययन करने वाले अथवा गायत्री का जप करने वाले मैं ने इच्छाओं को पूर्ण करने वाली, पापों से छुड़ाने वाली एवं वेदों की माता सावित्री की स्तुति की है. ब्राह्मणों को पवित्र करने वाली सावित्री हमें प्रेरित करे. वह सावित्री देवी मुझे आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति और ब्रह्म तेज दे कर ब्रह्म लोक को गमन करे. (१)
I, who study the Vedas or chant Gayatri, have praised Savitri, the one who fulfills desires, redeems sins and the mother of the Vedas. May Savitri, who purifies Brahmins, inspire us. May savitri devi give me life, life, people, animals, fame and brahm and go to brahma lok. (1)