हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 19.8.2

कांड 19 → सूक्त 8 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 19)

अथर्ववेद: | सूक्त: 8
अ॑ष्टाविं॒शानि॑ शि॒वानि॑ श॒ग्मानि॑ स॒ह योगं॑ भजन्तु मे । योगं॒ प्र प॑द्ये॒ क्षेमं॑ च॒ क्षेमं॒ प्र प॑द्ये॒ योगं॑ च॒ नमो॑ऽहोरा॒त्राभ्या॑मस्तु ॥ (२)
देखने में सुख देने वाले तथा सुख प्रदान करने वाले जो अट्ठाईस नक्षत्र हैं, वे एकसाथ मिल कर मुझे प्राप्त हों एवं मुझे सुख प्रदान करें. मैं नक्षत्रों की कृपा से अप्राप्त वस्तुओं को प्राप्त करूं तथा प्राप्त वस्तुओं की सुरक्षा कर सकूं. दिन और रात को मेरा नमस्कार है. (२)
May the twenty-eight nakshatras that give happiness and happiness in seeing, together they get me and give me happiness. I can get the unearned things by the grace of the constellations and protect the things received. My greetings to the day and night. (2)