हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 2.1.3

कांड 2 → सूक्त 1 → मंत्र 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 2)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
स नः॑ पि॒ता ज॑नि॒ता स उ॒त बन्धु॒र्धामा॑नि वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ । यो दे॒वानां॑ नाम॒ध एक॑ ए॒व तं सं॑प्र॒श्नं भुव॑ना यन्ति॒ सर्वा॑ ॥ (३)
वह सूर्यात्मक परमात्मा हमारा पालनकर्ता, जन्मदाता एवं बंधु है. वह स्वर्ग आदि स्थानों एवं वहां प्राप्त होने वाले समस्त प्राणियों को जानता है. एकमात्र वही इंद्र आदि देवों का नाम रखने वाला है अथवा वह स्वयं ही इंद्र आदि नाम धारण करता है. इस प्रकार के परमात्मा को सभी प्राणी यह पूछते हुए प्राप्त होते हैं कि वह परमात्मा किस प्रकार का है? (३)
That sun-based God is our sustainer, birth-giver and brother. He knows the places of heaven and all the beings who are found there. The only one who names Indra adi devas or he himself wears the name Indra etc. This type of God is attained by all beings asking what kind of God that God is. (3)