हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 2.13.1

कांड 2 → सूक्त 13 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 2)

अथर्ववेद: | सूक्त: 13
आ॑यु॒र्दा अ॑ग्ने ज॒रसं॑ वृणा॒नो घृ॒तप्र॑तीको घृ॒तपृ॑ष्ठो अग्ने । घृ॒तं पी॒त्वा मधु॒ चारु॒ गव्यं॑ पि॒तेव॑ पु॒त्रान॒भि र॑क्षतादि॒मम् ॥ (१)
हे अग्नि! तू इस ब्रह्मचारी को वृद्धावस्था तक आयु प्रदान कर. हे घृत के कारण प्रज्वलित एवं घृतरूपी रीढ़ वाले अग्नि देव! मधुर एवं निर्मल गोघृत से संतुष्ट हो कर तुम इस ब्रह्मचारी की रक्षा उसी प्रकार करो, जिस प्रकार पिता पुत्र की रक्षा करता है. (१)
O agni! Give this celibate life till old age. O Agni God with a burning and ugly spine because of hatred! Being satisfied with the sweet and pure cow, you should protect this brahmachari in the same way that the father protects the son. (1)