अथर्ववेद (कांड 2)
परी॒दं वासो॑ अधिथाः स्व॒स्तयेऽभू॑र्गृष्टी॒नाम॑भिशस्ति॒पा उ॑ । श॒तं च॒ जीव॑ श॒रदः॑ पुरू॒ची रा॒यश्च॒ पोष॑मुप॒संव्य॑यस्व ॥ (३)
हे विद्यार्थी! तुम ने यह वस्त्र क्षेम प्राप्त करने के हेतु धारण किया है. इसे धारण कर के तुम हिंसा के भय से प्रजाओं की रक्षा करो. तुम अधिक समय तक पुत्र, पौत्र आदि को व्याप्त करने वाले सौ वर्षों तक जीवित रहो एवं धन की पुष्टि धारण करो. (३)
O student! You have worn this garment to get fame. By wearing it, you protect the people from the fear of violence. You live for a hundred years for a long time, spreading the son, grandson, etc. and hold the confirmation of wealth. (3)