हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 2.15.3

कांड 2 → सूक्त 15 → मंत्र 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 2)

अथर्ववेद: | सूक्त: 15
यथा॒ सूर्य॑श्च च॒न्द्रश्च॒ न बि॑भी॒तो न रिष्य॑तः । ए॒वा मे॑ प्राण॒ मा बि॑भेः ॥ (३)
जिस प्रकार सूर्य और चंद्र न किसी से भयभीत होते हैं, न आशंकित होते हैं और न नष्ट होते हैं, हे मेरे प्राणो! इसी प्रकार तुम भी शत्रु, ग्रह, रोग आदि से डरो मत. (३)
Just as the sun and the moon are neither afraid of anyone, nor apprehensive nor destroyed, O my life! Similarly, do not be afraid of enemies, planets, diseases etc. (3)