अथर्ववेद (कांड 2)
यथा॒ ब्रह्म॑ च क्ष॒त्रं च॒ न बि॑भी॒तो न रिष्य॑तः । ए॒वा मे॑ प्राण॒ मा बि॑भेः ॥ (४)
जिस प्रकार ब्राह्मण और क्षत्रिय न किसी से भयभीत होते हैं, न आशंकित होते हैं और न नष्ट होते हैं, हे मेरे प्राणो! उसी प्रकार तुम भी किसी से मत डरो. (४)
Just as Brahmins and Kshatriyas are neither afraid of anyone, nor apprehensive nor destroyed, O my life! Similarly, don't be afraid of anyone. (4)