अथर्ववेद (कांड 2)
सूर्य॒ यत्ते॒ तप॒स्तेन॒ तं प्रति॑ तप॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥ (१)
हे सूर्य देव! आप की जो तप्त करने की शक्ति है, उस से उन्हें संताप पहुंचाओ, जो हम से द्वेष करते हैं अथवा हम जिन से द्वेष करते हैं. (१)
O Sun God! Anger those who hate us or those we hate with the power you have to heat. (1)