अथर्ववेद (कांड 2)
सूर्य॒ यत्ते॒ ऽर्चिस्तेन॒ तं प्रत्य॑र्च॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥ (३)
हे सूर्य देव! तुम्हारी जो दीप्ति है, उस से उन्हें जलाओ जो हम से द्वेष करते हैं अथवा हम जिन से द्वेष करते हैं. (३)
O Sun God! Burn those who hate us or those we hate with the glory you have. (3)