हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 114
अ॑भ्रातृ॒व्योऽअ॒ना त्वमना॑पिरिन्द्र ज॒नुषा॑ स॒नाद॑सि । यु॒धेदा॑पि॒त्वमि॑च्छसे ॥ (१)
हे इंद्र! तुम प्रकट होते ही मिलने की कामना करते हो तथा युद्ध में विजय की इच्छा करते हो. तुम्हारा कोई भी शत्रु शेष नहीं है. (१)
O Indra! You wish to meet as soon as you appear and desire victory in war. You have no enemies left. (1)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 114
नकी॑ रे॒वन्तं॑ स॒ख्याय॑ विन्दसे॒ पीय॑न्ति ते सुरा॒श्व᳡:। य॒दा कृ॒णोषि॑ नद॒नुं समू॑ह॒स्यादित्पि॒तेव॑ हूयसे ॥ (२)
हे इंद्र! सुराश्च अर्थात्‌ मदिरा पीने वाले तुम्हें दुःखी करते हैं. तुम जब गर्जन करने लगते हो तब पिता के समान कहे जाते हो. तुम धनी मनुष्य को मित्रता के लिए प्राप्त करते हो. (२)
Hey Indra! Sureksh means those who drink alcohol make you sad. When you start roaring then you are called like father. You get a rich man for friendship. (2)