अथर्ववेद (कांड 20)
वृसा॑कपायि॒ रेव॑ति॒ सुपु॑त्र॒ आदु॒ सुस्नु॑षे । घस॑त्त॒ इन्द्र॑ उ॒क्षणः॑ प्रि॒यं का॑चित्क॒रं ह॒विर्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥ (१३)
हे वृषाकपि रूप सूर्य की पत्नी! तू सुपुत्रों वाली एवं धन से संपन्न है. तेरी जल रूपी हवि का इंद्र सेवन करें, क्योंकि वे सभी देवों में शरेष्ठ हैं. (१३)
O wife of the sun! You are full of sons and riches. Consume indra of your water-like havi, because he is the best among all the gods. (13)