हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 20.13.2

कांड 20 → सूक्त 13 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 13
आ वो॑ वहन्तु॒ सप्त॑यो रघु॒ष्यदो॑ रघु॒पत्वा॑नः॒ प्र जि॑गात बा॒हुभिः॑ । सी॑दता ब॒र्हिरु॒रु वः॒ सद॑स्कृ॒तं मा॒दय॑ध्वं मरुतो॒ मध्वो॒ अन्ध॑सः ॥ (२)
हे मरुतो! मंद गति वाले अश्च तुम्हें यज्ञशाला में लाएं. तुम भी शीघ्र गमन के साधनों द्वारा यहां आओ. हम ने तुम्हारे बैठने के लिए यज्ञवेदी के रूप में विशाल स्थान बनाया है. उस पर हम ने कुश बिछाए हैं. तुम उन कुशों पर बैठो. वहां बैठ कर तुम सोमरस पियो और प्रसन्न होओ. (२)
O Maruto! Slow-moving ashchas bring you to the yagyashala. You also come here by means of speedy movement. We have created a huge space for you to sit in the form of yagnavedi. We have laid kush on it. You sit on those cushions. Sit there and drink someras and be happy. (2)