अथर्ववेद (कांड 20)
यद्ध॒ प्राची॒रज॑ग॒न्तोरो॑ मण्डूरधाणिकीः । ह॒ता इन्द्र॑स्य॒ शत्र॑वः॒ सर्वे॑ बुद्बु॒दया॑शवः ॥ (१)
जब मंड्रधाणकी प्राची दिशा हृदय प्रदेश को प्राप्त हुई, तब इंद्र के सभी शत्रु नष्ट हो गए. (१)
When the prachi direction of Mandradhana was received by the heart region, then all the enemies of Indra were destroyed. (1)