हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 20.140.1

कांड 20 → सूक्त 140 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 140
यन्ना॑सत्या भुर॒ण्यथो॒ यद्वा॑ देव भिष॒ज्यथः॑ । अ॒यं वां॑ व॒त्सो म॒तिभि॒र्न वि॑न्धते ह॒विष्म॑न्तं॒ हि गच्छ॑थः ॥ (१)
हे अश्चिनीकुमारो! तुम शीघ्र गमन करने वाले तथा चिकित्सा करने में कुशल हो. तुम्हारा यह वत्स मोतियों के द्वारा नहीं बांधा जाता है. तुम उस के समीप जाते हो, जिस के पास हवि है. (१)
O Ashchini Kumaro! You are quick to move and are skilled in healing. This vatsa of yours is not tied by beads. You go close to him who has havi. (1)