अथर्ववेद (कांड 20)
कृ॒तं न श्व॒घ्नी वि चि॑नोति॒ देव॑ने सं॒वर्गं॒ यन्म॒घवा॒ सूर्यं॒ जय॑त् । न तत्ते॑ अ॒न्यो अनु॑ वी॒र्यं शक॒न्न पु॑रा॒णो म॑घव॒न्नोत नूत॑नः ॥ (५)
जुआरी जिस प्रकार पासों को पकड़ता है, उसी प्रकार हमारी स्तुतियां इंद्र को ग्रहण करती है. धन के स्वामी इंद्र ने अंधकार का विनाश करने वाले सूर्य देव को आकाश में स्थापित किया है. हे इंद्र! तुम्हारे इस कार्य का अनुकरण प्राचीन अथवा आधुनिक कोई अन्य नहीं कर सकता है. (५)
Just as a gambler holds the dice, our praises receive Indra. Indra, the swami of wealth, has installed the Sun God, who destroys darkness, in the sky. O Indra! No one else, ancient or modern, can imitate this work of yours. (5)