हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 20.19.2

कांड 20 → सूक्त 19 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 19
अ॑र्वा॒चीनं॒ सु ते॒ मन॑ उ॒त चक्षुः॑ शतक्रतो । इन्द्र॑ कृ॒ण्वन्तु॑ वा॒घतः॑ ॥ (२)
हे अनेक कर्म करने वाले इंद्र! यज्ञ कर्म का निर्वाह करने वाले ऋत्विज्‌ तुम्हें हमारे सामने लाएं. वे तुम्हारी दृष्टि को भी हमारे सामने करें. (२)
O Indra, who does many things! May the Ritvijas, who perform the yajna karma, bring you before us. They should also make your vision in front of us. (2)