हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 20.21.11

कांड 20 → सूक्त 21 → मंत्र 11 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 21
य उ॒दृची॑न्द्र दे॒वगो॑पाः॒ सखा॑यस्ते शि॒वत॑मा॒ असा॑म । त्वां स्तो॑षाम॒ त्वया॑ सु॒वीरा॒ द्राघी॑य॒ आयुः॑ प्रत॒रं दधा॑नाः ॥ (११)
हे इंद्र! इस यज्ञ की समाप्ति पर हमें तुम्हारी रक्षा प्राप्त हो. सखा के समान तुम्हारे अत्यंत प्रिय होते हुए हम इस यज्ञ के बाद भी अतिशय कल्याणों को प्राप्त करें. इस यज्ञ की समाप्ति के उत्तरकाल में भी हम तुम्हारी स्तुति करें. तुम्हारी स्तुतियां करते हुए हम शोभन पुत्रों को तथा दीर्घ आयु को प्राप्त करें. (११)
O Indra! At the end of this yajna, we get your protection. Being very dear to you like Sakha, let us achieve great welfare even after this yajna. Let us praise you even after the end of this yajna. While praising you, let us receive Shobhan's sons and long life. (11)