अथर्ववेद (कांड 20)
इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॒ स्तोमै॑रि॒ह ह॑वामहे । उ॒क्थेभिः॑ कु॒विदा॒गम॑त् ॥ (४)
हम अपनी स्तुतियों के द्वारा इंद्र को सोम पान के लिए बुलाते हैं. इंद्र हमारे यज्ञ में अनेक बार आएं. (४)
We call Indra to drink Soma through our praises. Indra comes to our yajna many times. (4)