हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 20.25.1

कांड 20 → सूक्त 25 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 25
अश्वा॑वति प्रथ॒मो गोषु॑ गच्छति सुप्रा॒वीरि॑न्द्र॒ मर्त्य॒स्तवो॒तिभिः॑ । तमित्पृ॑णक्षि॒ वसु॑ना॒ भवी॑यसा॒ सिन्धु॒मापो॒ यथा॒भितो॒ विचे॑तसः ॥ (१)
हे इंद्र! जो पुरुष तुम्हारे द्वारा रक्षित होता है, वह बहुसंख्यक अश्चों वाले युद्धों में तथा अश्वारोहियों में प्रमुख बन जाता है. वह गायों वाले पुरुषों में भी श्रेष्ठ होता है. जिस प्रकार जल सब ओर से सागर को भरते हैं, उसी प्रकार तुम भी उसे अनेक प्रकार से प्राप्त होने वाले धन से पूर्ण करते हो. (१)
O Indra! The man who is protected by you becomes prominent in wars with majority horses and in equestrians. He is also superior to men with cows. Just as water fills the ocean from all sides, so you also complete it with the wealth you receive in many ways. (1)