हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 32
आ रोद॑सी॒ हर्य॑माणो महि॒त्वा नव्यं॑नव्यं हर्यसि॒ मन्म॒ नु प्रि॒यम् । प्र प॒स्त्यमसुर हर्य॒तं गोरा॒विष्कृ॑धि॒ हर॑ये॒ सूर्या॑य ॥ (१)
हे इंद्र! तुम अपनी महिमा से आकाश और धरती को व्याप्त करते हो. तुम सदा नवीन रहते हो. तुम हमारे प्रिय स्तोत्र की इच्छा करते हो. तुम पणियों द्वारा चुराई गई गायों को रखने का स्थान सूर्य को बता देते हो. ऐसी कृपा करो कि सूर्य स्तुति करने वालों को वह गोष्ठ अर्थात्‌ गायों को रखने का स्थान दे दें. (१)
O Indra! You pervad the heavens and the earth with your glory. You are always new. You desire our beloved hymn. You tell the sun the place to keep cows stolen by the wives. Please be kind that those who praise the sun give that seminar i.e. a place to keep cows. (1)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 32
आ त्वा॑ ह॒र्यन्तं॑ प्र॒युजो॒ जना॑नां॒ रथे॑ वहन्तु॒ हरि॑शिप्रमिन्द्र । पिबा॒ यथा॒ प्रति॑भृतस्य॒ मध्वो॒ हर्य॑न्य॒ज्ञं स॑ध॒मादे॒ दशो॑णिम् ॥ (२)
हे इंद्र! तुम सोमरस पीने के इच्छुक हो. सोमरस पीने से तुम्हारी ठुडूडी हरे रंग की हो गई है. तुम्हारे रथ में जुड़े हुए घोड़े तुम को यहां लाएं. चमस आदि पात्रों में रखे हुए सोम वाले घर में आ कर तुम सोम को पी सको, इसलिए तुम्हारे अश्व तुम्हें यहां ले आएं. (२)
O Indra! You're willing to drink somers. By drinking somers, your theududi has become green. Bring you here the horses attached to your chariot. You can come to the house of Som kept in chamas etc. characters and drink Soma, so your horses bring you here. (2)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 32
अपाः॒ पूर्वे॑षां हरिवः सु॒ताना॒मथो॑ इ॒दं सव॑नं॒ केव॑लं ते । म॑म॒द्धि सोमं॒ मधु॑मन्तमिन्द्र स॒त्रा वृ॑षं ज॒ठर॒ आ वृ॑षस्व ॥ (३)
हे इंद्र! तुम प्रातः सवन में सोम को पी चुके हो. यह माध्यंदिन सवन भी तुम्हारा ही है. इस सवन में तुम सोम का पान करते हुए प्रसन्न बनो. तुम इस पूरे सोमरस को एक साथ ही अपने पेट में भर लो. (३)
O Indra! You have drunk Mon in the morning. This median savan is also yours. In this sawan, you should be happy while drinking Soma. You fill this whole somerus together in your stomach. (3)