अथर्ववेद (कांड 20)
श॒तानी॑केव॒ प्र जि॑गाति धृष्णु॒या ह॑न्ति वृ॒त्राणि॑ दा॒शुषे॑ । गि॒रेरि॑व॒ प्र रसा॑ अस्य पिन्विरे॒ दत्रा॑णि पुरु॒भोज॑सः ॥ (२)
हवि देने वाले जो यजमान अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर के उन का वध करते हैं, उन यजमानों के लिए इंद्र का स्वर्ण रूप धन इस प्रकार बरसता है, जिस प्रकार पर्वत से जल निकलता है. (२)
For those hosts who conquer their enemies and kill them, indra's golden form of wealth rains in such a way that water comes out of the mountain. (2)