हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 52
व॒यं घ॑ त्वा सु॒ताव॑न्त॒ आपो॒ न वृ॒क्तब॑र्हिषः । प॒वित्र॑स्य प्र॒स्रव॑णेषु वृत्रह॒न्परि॑ स्तो॒तार॑ आसते ॥ (१)
हे इंद्र! हमारे पास वह सोमरस है जो तैयार करने पर जल के समान तरल हो गया है. हम तुम्हारी स्तुति करते हैं. (१)
O Indra! We have that somersa which has become liquid like water when prepared. We praise you. (1)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 52
स्वर॑न्ति त्वा सु॒ते नरो॒ वसो॑ निरे॒क उ॒क्थिनः॑ । क॒दा सु॒तं तृ॑षा॒ण ओ॑क॒ आ ग॑म॒ इन्द्र॑ स्व॒ब्दीव॒ वंस॑गः ॥ (२)
हे इंद्र! सोमरस तैयार करने के बाद यजमान तुम्हारा आह्वान करते हैं. तुम बैल के समान प्यासे हो कर इस सोमरस को पीने के लिए हमारे यज्ञ में कब आओगे? (२)
O Indra! After preparing somersa, the host invokes you. When will you come to our yagna to drink this someras thirsty like a bull? (2)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 52
कण्वे॑भिर्धृष्ण॒वा धृ॒षद्वाजं॑ दर्षि सह॒स्रिण॑म् । पि॒शङ्ग॑रूपं मघवन्विचर्षणे म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥ (३)
हे इंद्र! तुम शक्तिशाली मनुष्य को भी मार डालते हो तथा उस के धन पर अधिकार कर लेते हो. हम तुम से धन मांगते हैं, जो गौ आदि से युक्त हो. (३)
O Indra! You also kill a powerful man and take possession of his wealth. We ask you for money, which is full of cow etc. (3)