हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
म॒हाँ इन्द्रः॑ प॒रश्च॒ नु म॑हि॒त्वम॑स्तु व॒ज्रिणे॑ । द्यौर्न प्र॑थि॒ना शवः॑ ॥ (१)
श्रेष्ठ और महान इंद्र महिमा वाले हैं. उन का पराक्रम आकाश के समान विशाल हो. (१)
The superior and the great Indra is of glory. Their might be as great as the sky. (1)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
स॑मो॒हे वा॒ य आश॑त॒ नर॑स्तो॒कस्य॒ सनि॑तौ । विप्रा॑सो वा धिया॒यवः॑ ॥ (२)
जो मनुष्य युद्ध की कामना करते हैं, वे अपने पुत्रों के साथ भी युद्ध करने लगते हैं. (२)
Those who wish for war also start fighting with their sons. (2)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
यः कु॒क्षिः सो॑म॒पात॑मः समु॒द्र इ॑व॒ पिन्व॑ते । उ॒र्वीरापो॒ न का॒कुदः॑ ॥ (३)
सोमरस पीने वाले इंद्र की कोख ककुद अर्थात्‌ ठाट वाले बैल तथा अधिक जल को धारण करने वाले सागर के समान बढ़ जाती है. (३)
Indra's womb, which drinks someras, grows like a kakud i.e. a bull with a lump and an ocean that holds more water. (3)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
ए॒वा ह्य॑स्य सू॒नृता॑ विर॒प्शी गोम॑ती म॒ही । प॒क्वा शाखा॒ न दा॒शुषे॑ ॥ (४)
इंद्र को गौ प्रदान करने वाली धरती हवि देने वाले यजमान के लिए उस वृक्ष की शाखा के समान हो जाती है, जिस पर पके हुए फल लगे होते हैं. (४)
The earth that provides cow to Indra becomes like a branch of a tree on which ripe fruits are planted for the host who gives havi. (4)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
ए॒वा हि ते॒ विभू॑तय ऊ॒तय॑ इन्द्र॒ माव॑ते । स॒द्यश्चि॒त्सन्ति॑ दा॒शुषे॑ ॥ (५)
हे इंद्र! जो यजमान तुम्हें हवि देता है, उस के निमित्त तुम्हारे रक्षा साधन सदा प्रस्तुत रहते हैं. (५)
O Indra! Your protective means are always presented for the host who gives you courage. (5)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
ए॒वा ह्य॑स्य॒ काम्या॒ स्तोम॑ उ॒क्थं च॒ शंस्या॑ । इन्द्रा॑य॒ सोम॑पीतये ॥ (६)
इंद्र जब सोमरस पीते हैं, उस समय स्तोम, उक्थ और शस्त्र नाम वाले मंत्र उन के लिए प्रसन्न करने वाले होते हैं. (६)
When Indra drinks Someras, mantras named Stom, Ukth and Shastra are pleasing for him. (6)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
इन्द्रेहि॒ मत्स्यन्ध॑सो॒ विश्वे॑भिः सोम॒पर्व॑भिः । म॒हाँ अ॑भि॒ष्टिरोज॑सा ॥ (७)
हे इंद्र! यहां अर्थात्‌ हमारे यज्ञ में आओ. सोमयागों में सोमरस पीने के कारण उत्पन्न तुम्हारा हर्षपूर्ण ओज हमारे लिए अभीष्ट और महान है. (७)
O Indra! Come here i.e. to our yajna. Your joyful oj caused by drinking someras in somayagas is desired and great for us. (7)

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 71
एमे॑नं सृजता सु॒ते म॒न्दिमिन्द्रा॑य म॒न्दिने॑ । चक्रिं॒ विश्वा॑नि॒ चक्र॑ये ॥ (८)
हे अध्वर्युजनो! तुम उक्थ मंत्र बोलते हुए सोमरस को चमसों के द्वारा मिलाओ. यह सोम निचुड़ जाने पर इंद्र को प्रसन्न करता है. (८)
O Swami! You mix somras with spoons while chanting the uktha mantra. This soma pleases Indra when he is gone. (8)
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