हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 20.72.3

कांड 20 → सूक्त 72 → मंत्र 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 72
उ॒तो नो॑ अ॒स्या उ॒षसो॑ जु॒षेत॒ ह्य१॒॑र्कस्य॑ बोधि ह॒विषो॒ हवी॑मभिः॒ स्व॑र्षाता॒ हवी॑मभिः । यदि॑न्द्र॒ हन्त॑वे॒ मृधो॒ वृषा॑ वज्रिं॒ चिके॑तसि । आ मे॑ अ॒स्य वे॒धसो॒ नवी॑यसो॒ मन्म॑ श्रुधि॒ नवी॑यसः ॥ (३)
हम स्वर्ग प्राप्ति की कामना से सूर्य को प्रकट करने वाली उषा को हवि प्रदान करते हैं. हे वर्षणशील इंद्र! तुम युद्ध के इच्छुक शत्रुओं का संहार करने के लिए अपना वज्र हाथ में लेते हो. मैं ने जिन नवीन स्तोत्रों की रचना की है, तुम उन्हें सुनो. (३)
With the desire to attain heaven, we offer havi to Usha who reveals the Sun. O rain-bearing Indra! You take your thunderbolt in your hand to kill the enemies who are desirous of war. Listen to the new hymns that I have composed. (3)