हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 20.85.2

कांड 20 → सूक्त 85 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 85
अ॑वक्र॒क्षिणं॑ वृष॒भं य॑था॒जुरं॒ गां न च॑र्षणी॒सह॑म् । वि॒द्वेष॑णं सं॒वन॑नोऽभयंक॒रं मंहि॑ष्ठमुभया॒विन॑म् ॥ (२)
इंद्र सांड के समान घूमने वाले, संघर्षशील, अवकक्षी, शत्रुओं के द्वेषी, अजर, अतिशय महिमाशाली, सेवा के योग्य तथा दोनों लोकों के रक्षक हैं. (२)
Indra is a bull-like wanderer, struggling, avakshi, hostile to enemies, ajar, very glorious, worthy of service and protector of both worlds. (2)