हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 20.96.14

कांड 20 → सूक्त 96 → मंत्र 14 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 20)

अथर्ववेद: | सूक्त: 96
यस्त॑ ऊ॒रू वि॒हर॑त्यन्त॒रा दम्प॑ती॒ शये॑ । योनिं॒ यो अ॒न्तरा॒रेढि तमि॒तो ना॑शयामसि ॥ (१४)
जो रोग तुम पतिपत्नी में व्याप्त है, जो तेरी योनि में तथा तेरी जंघाओं में व्याप्त है, हम उसे दूर करते है. (१४)
We remove the disease that pervades you husband and wife, which is in your vagina and in your thighs. (14)