अथर्ववेद (कांड 20)
श॒तं जी॑व श॒रदो॒ वर्ध॑मानः श॒तं हे॑म॒न्ताञ्छ॒तमु॑ वस॒न्तान् । श॒तं त॒ इन्द्रो॑ अ॒ग्निः स॑वि॒ता बृह॒स्पतिः॑ श॒तायु॑षा ह॒विषाहा॑र्षमेनम् ॥ (९)
हे रोगी! तू सौ वर्ष तक जीवित रहता हुआ वृद्धि प्राप्त कर. तू सौ हेमंतों तथा सौ वसंतों तक जीवित रह. इंद्र, अग्नि, सविता तथा बृहस्पति तुझे शतायु बनाएं. इस हवि के द्वारा मैं तुझे शतायु बना कर ले आया हूं. (९)
O patient! You live for a hundred years and gain growth. Live for a hundred hemants and a hundred springs. May Indra, Agni, Savita and Jupiter make you centenarians. Through this havi, I have brought you as a centennial. (9)