हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 3.1.2

कांड 3 → सूक्त 1 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
यू॒यमु॒ग्रा म॑रुत ई॒दृशे॑ स्था॒भि प्रेत॑ मृ॒णत॒ सह॑ध्वम् । अमी॑मृण॒न्वस॑वो नाथि॒ता इ॒मे अ॒ग्निर्ह्ये॑षां दू॒तः प्र॒त्येतु॑ वि॒द्वान् ॥ (२)
हे मरुतो! तुम संग्राम में सहायता करने के लिए मेरे समीप रहो एवं मेरे शत्रुओं पर प्रहार करने जाओ. वसु देवगण भी मेरी प्रार्थना पर शत्रुनाश के लिए आगे बढ़ें. वसुओं में प्रधान अग्नि भी शत्रुओं को जानते हुए दूत के समान अग्रसर हो. (२)
O Maruto! You stay close to me to help in the struggle and go to attack my enemies. Vasu Devgan should also proceed to destroy the enemy on my prayer. Among the Vasus, the chief agni should also move forward like an angel knowing the enemies. (2)