हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 3.1.6

कांड 3 → सूक्त 1 → मंत्र 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
इन्द्रः॒ सेनां॑ मोहयतु म॒रुतो॑ घ्न॒न्त्वोज॑सा । चक्षूं॑ष्य॒ग्निरा द॑त्तां॒ पुन॑रेतु॒ परा॑जिता ॥ (६)
देवों के अधिपति इंद्र शत्रु सेना को किंकर्तव्यविमूढ़ कर दें और मरुत्‌ अपने तेज से उस का विनाश करें. अग्नि देव उन की आंखों से देखने की शक्ति छीन लें. इस प्रकार पराजित शत्रु सेना वापस चली जाए. (६)
Indra, the ruler of the gods, should make the enemy army abyss and kill it with his glory. May Agni Dev take away the power to see from their eyes. Thus the defeated enemy army should go back. (6)