अथर्ववेद (कांड 3)
इ॒हैव स्तं॑ प्राणापानौ॒ माप॑ गातमि॒तो यु॒वम् । शरी॑रम॒स्याङ्गा॑नि ज॒रसे॑ वहतं॒ पुनः॑ ॥ (६)
हे प्राण और अपान वायु! तुम इस के शरीर में ही रहो, इस के शरीर से अकाल में ही मत निकलो. इस रोगी व्यक्ति के शरीर के हस्त, चरण आदि अंगों को तुम वृद्धावस्था तक मत त्यागो. (६)
O life and your air! You stay in his body, do not come out of his body in famine. Do not leave the hands, feet, etc. of this patient's body till old age. (6)