अथर्ववेद (कांड 3)
अ॒हम॑स्मि॒ सह॑मा॒नाथो॒ त्वम॑सि सास॒हिः । उ॒भे सह॑स्वती भू॒त्वा स॒पत्नीं॑ मे सहावहै ॥ (५)
हे पाठा नामक जड़ीबूटी! मैं तेरी कृपा से अपनी सौतों को पराजित करने वाली बनूं और तू भी श्रुओं का तिरस्कार करने में समर्थ हो. इस प्रकार हम दोनों शन्रुओं को पराजित करने वाली बने. मैं अपनी सौत को पराजित करूं. (५)
This is a herb called Patha! By Your grace, I will be the one who defeats my sons and you too may be able to despise the curses. In this way, we became the ones to defeat both the nerves. Let me defeat my sauta. (5)