हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
अ॒यं ते॒ योनि॑रृ॒त्वियो॒ यतो॑ जा॒तो अरो॑चथाः । तं जा॒नन्न॑ग्न॒ आ रो॒हाथा॑ नो वर्धया र॒यिम् ॥ (१)
हे अग्नि देव! यह अरणि अथवा यजमान तेरी उत्पत्ति का कारण बने. जिस से उत्पन्न हो कर तुम दीप्त होते हो, अपने उस उत्पत्ति कारण को जानते हुए उस में प्रवेश करो. इस के पश्चात तुम हमारे धन की वृद्धि करो. (१)
O God of Agni! May this arani or host be the cause of your creation. From which you are born and you are illuminated, enter into it knowing the cause of your origin. After this, you increase our wealth. (1)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
अग्ने॒ अच्छा॑ वदे॒ह नः॑ प्र॒त्यङ्नः॑ सु॒मना॑ भव । प्र णो॑ यच्छ विशां पते धन॒दा अ॑सि न॒स्त्वम् ॥ (२)
हे अग्नि देव! हमारे सामने हो कर हमें प्राप्त होने वाले फल को प्रिय कहो तथा हमारे सामने आ कर प्रसन्न मन वाले बनो. हे वैश्वानर रूप से प्रजापालक अग्नि! हमें अपेक्षित धन प्रदान करो, क्योंकि तुम ही हमारे धनदाता हो. (२)
O God of Agni! Call the fruits we receive in front of us dear and come in front of us and be happy. O agni of the people in a global way! Give us the money we need, because you are our giver. (2)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
प्र णो॑ यच्छत्वर्य॒मा प्र भगः॒ प्र बृह॒स्पतिः॑ । प्र दे॒वीः प्रोत सू॒नृता॑ र॒यिं दे॒वी द॑धातु मे ॥ (३)
अर्यमा, भग और बृहस्पति देव, हमें धन प्रदान करें. इंद्राणी आदि देवियां तथा प्रिय वाणी वाली सरस्वती देवी हमें धन प्रदान करें. (३)
May Swami Aryama, Swami and Jupiter, give us wealth. May Goddess Indrani and Saraswati Devi with a beloved voice give us wealth. (3)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
सोमं॒ राजा॑न॒मव॑से॒ऽग्निं गी॒र्भिर्ह॑वामहे । आ॑दि॒त्यं विष्णुं॒ सूर्यं॑ ब्र॒ह्माणं॑ च॒ बृह॒स्पति॑म् ॥ (४)
हम तेजस्वी सोम और अग्नि को स्तुति रूपी वचनों के द्वारा यहां बुलाते हैं. वे हमारा मनचाहा फल दे कर हमारी रक्षा करें. हम अदिति के पुत्र, मित्र और वरुण को, सब के प्रेरक सूर्य को तथा इन सभी देवों को बनाने वाले ब्रह्मा को तथा देवों के हितकारक बृहस्पति को बुलाते हैं. (४)
We call the stunning Soma and Agni here with words of praise. They should protect us by giving us the fruits we want. We call Aditi's son, friend and Varuna, the inspired Sun of all, Brahma, the creator of all these gods, and Jupiter, the benefactor of the gods. (4)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
त्वं नो॑ अग्ने अ॒ग्निभि॒र्ब्रह्म॑ य॒ज्ञं व॑र्धय । त्वं नो॑ देव॒ दात॑वे र॒यिं दाना॑य चोदय ॥ (५)
हे अग्नि! तुम अन्य अग्नियों के साथ मिल कर हमारी मंत्रों वाली स्तुति को और स्तुतियों द्वारा साध्य यज्ञ को सफल करो. हे अग्नि देव! हवि देने वाले हमारे यजमान को हमें धन देने के लिए प्रेरित करो. (५)
O agni! You, along with other agnis, make our mantra-like praise and the yajna achieved by praises successful. O God of Agni! Inspire our host to give us money. (5)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
इ॑न्द्रवा॒यू उ॒भावि॒ह सु॒हवे॒ह ह॑वामहे । यथा॑ नः॒ सर्व॒ इज्जनः॒ संग॑त्यां सु॒मना॑ अस॒द्दान॑कामश्च नो॒ भुव॑त् ॥ (६)
इंद्र और अग्नि सुखपूर्वक बुलाए जा सकते हें, इसलिए हम इस यज्ञ में उन का आह्वान करते हैं. हम इस कारण उन का आह्वान करते हैं कि हमारे सभी जन उन की संगति से शोभन मन वाले बनें तथा हमें दान देने की इच्छा करे. (६)
Indra and Agni can be called happily, so we invoke them in this yajna. We call upon them for this reason that all our people should be adorned with their company and wish to donate to us. (6)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
अ॑र्य॒मणं॒ बृह॒स्पति॒मिन्द्रं॒ दाना॑य चोदय । वातं॒ विष्णुं॒ सर॑स्वतीं सवि॒तारं॑ च वा॒जिन॑म् ॥ (७)
हे स्तोता! तुम अर्यमा, बृहस्पति, इंद्र, वाणी रूपी सरस्वती एवं वेग वाले सविता देव को हमें धन देने के लिए प्रेरित करो. (७)
O Stotta! May you inspire Aryama, Jupiter, Indra, Saraswati in the form of speech and Savita Dev with velocity to give us wealth. (7)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
वाज॑स्य॒ नु प्र॑स॒वे सं ब॑भूविमे॒मा च॒ विश्वा॒ भुव॑नानि अ॒न्तः । उ॒तादि॑त्सन्तं दापयतु प्रजा॒नन्र॒यिं च॑ नः॒ सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छ ॥ (८)
हम अन्न उत्पन्न करने वाले कर्म को शीघ्र प्राप्त करे. दिखाई देने वाले सभी प्राणी वाज प्रसव अर्थात्‌ वृष्टि द्वारा अन्न पैदा करने वाले देव के मध्य निवास करते हैं. सभी प्राणियों के हृदय के अभिप्राय को जानने वाले वाज-प्रसव देव दान न करने वाले मुझ पुरुष को धन दान करने की प्रेरणा दें तथा हमारे धन को पुत्र, पौत्र आदि से युक्त करें. (८)
Let us quickly achieve the work that produces food. All the visible beings reside in the midst of the god who produces food through rain. May god, who knows the meaning of the heart of all beings, inspire me to donate money to my man who does not donate and make our wealth rich with sons, grandsons, etc. (8)
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