अथर्ववेद (कांड 3)
वेदा॒हं पय॑स्वन्तं च॒कार॑ धा॒न्यं॑ ब॒हु । सं॒भृत्वा॒ नाम॒ यो दे॒वस्तं व॒यं ह॑वामहे॒ योयो॒ अय॑ज्वनो गृ॒हे ॥ (२)
मैं उस सार वाले देव को जानता हूं. उस ने जौ, गेहूं आदि की वृद्धि की है. भौरे के समान संग्रह करने वाले जो देव हैं, उन का मैं स्तुतियों के द्वारा आह्वान करता हूं. यज्ञ करने वाले के घर में जो जौ, गेहूं आदि धान्य है, देव उसे एकत्र कर के मुझे प्रदान करें. (२)
I know the god with that essence. He has increased barley, wheat etc. I invoke the gods who collect like a bumblebee through praises. God should collect the barley, wheat etc. grains in the house of the performer of yajna and give it to me. (2)