हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 25
उ॑त्तु॒दस्त्वोत्तु॑दतु॒ मा धृ॑थाः॒ शय॑ने॒ स्वे । इषुः॒ काम॑स्य॒ या भी॒मा तया॑ विध्यामि त्वा हृ॒दि ॥ (१)
हे नारी! उत्तुद नाम के देव अत्यधिक व्यथित करने वाले हैं. वे तुझे कामार्ता करें. मदन विकारों से व्यथित हो कर तू अपने पलंग पर सोना पसंद मत कर. कामदेव का जो भयानक बाण है, उस से मैं तेरे हृदय को ताड़ित करता हूं. (१)
O woman! The god named Uttuda is very distressing. Let them kill you. Madan, you do not like to sleep on your bed due to disorders. I chastise your heart with the terrible arrow of Cupid. (1)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 25
आ॒धीप॑र्णां॒ काम॑शल्या॒मिषुं॑ संक॒ल्पकु॑ल्मलाम् । तां सुसं॑नतां कृ॒त्वा कामो॑ विध्यतु त्वा हृ॒दि ॥ (२)
मन का कामोन्माद जिस का पर्ण अर्थात्‌ पीछे वाला भाग है और रमण करने की अभिलाषा जिस का फल अर्थात्‌ आगे वाला भाग है तथा भोग विषयक संकल्प जिस के दोनों भागों को जोड़ने वाला द्रव्य है, इस प्रकार के बाण को अपने धनुष पर रख कर कामदेव तेरे हृदय का वेधन करें. (२)
Keep this kind of arrow on your bow and the desire to do the lotus, whose desire to do raman is the fruit i.e. the front part and the resolution of enjoyment, which has a substance connecting the two parts, and worship your heart. (2)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 25
या प्ली॒हानं॑ शो॒षय॑ति॒ काम॒स्येषुः॒ सुसं॑नता । प्रा॒चीन॑पक्षा॒ व्यो॑षा॒ तया॑ विध्यामि त्वा हृ॒दि ॥ (३)
कामदेव के द्वारा भलीभांति खींचा गया बाण प्राणों के आश्रय प्लीहा को जलाता है. हे नारी! मैं सीधे पंखों वाले तथा अनेक प्रकार से दहन करने वाले उस बाण से तेरे हृदय का वेधन करता हूं. (३)
The arrow drawn well by Cupid burns the spleen, the shelter of life. O woman! I pierce your heart with that arrow with straight wings and burning in many ways. (3)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 25
शु॒चा वि॒द्धा व्यो॑षया॒ शुष्का॑स्या॒भि स॑र्प मा । मृ॒दुर्निम॑न्युः॒ केव॑ली प्रियवा॒दिन्यनु॑व्रता ॥ (४)
दाह करने वाले तथा शोकात्मक बाण से घायल होने के कारण तेरा कंठ सूख जाए और उस कंठ के कारण अपना अभिप्राय प्रकट करने में असमर्थ हो कर तू मेरे समीप आ. तू मृदुभाषिणी, एकमात्र मुझ से रक्षा पाने वाली तथा मेरे अनुकूल बोलने वाली बन और मेरे अनुकूल आचरण कर. (४)
Your throat may dry up because of the burning and the wounding arrow, and because of that throat, unable to express your intention, come close to me. You become soft-spoken, the only protector from me and speak in favor of me and behave in favor of me. (4)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 25
आजा॑मि॒ त्वाज॑न्या॒ परि॑ मा॒तुरथो॑ पि॒तुः । यथा॒ मम॒ क्रता॒वसो॒ मम॑ चि॒त्तमु॒पाय॑सि ॥ (५)
हे नारी! मैं कोड़े से मार कर तुझे अपने अभिमुख करता हू. मैं वहां से तुझे अपने समीप बुलाता हूं, जिस से तू मेरे संकल्प को पूरा करे और मेरी बुद्धि के अनुसार चले. (५)
O woman! I flog you with my face. I call you from there to Me, so that you may fulfill my resolve and walk according to my wisdom. (5)

अथर्ववेद (कांड 3)

अथर्ववेद: | सूक्त: 25
व्य॑स्यै मित्रावरुणौ हृ॒दश्चि॒त्तान्य॑स्यतम् । अथै॑नामक्र॒तुं कृ॒त्वा ममै॒व कृ॑णुतं॒ वशे॑ ॥ (६)
हे मित्र और वरुण! इस स्त्री के हुदय को ज्ञानशून्य कर दो. इस के पश्चात इसे कर्तव्य और अकर्तव्य के ज्ञान से शून्य कर के मेरे वशीभूत बना दो. (६)
Hey friend and Varun! Make this woman's heartless. After this, make it void of the knowledge of duty and non-duty and make it subjugated to me. (6)