हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 4.14.1

कांड 4 → सूक्त 14 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 4)

अथर्ववेद: | सूक्त: 14
अ॒जो ह्यग्नेरज॑निष्ट॒ शोका॒त्सो अ॑पश्यज्जनि॒तार॒मग्रे॑ । तेन॑ दे॒वा दे॒वता॒मग्र॑ आय॒न्तेन॒ रोहा॑न्रुरुहु॒र्मेध्या॑सः ॥ (१)
बकरा अग्नि के ताप से उत्पन्न हुआ था. उस ने सभी पशुओं की सृष्टि करने वाले प्रजापति को सब से पहले देखा. सृष्टि के आदि में इंद्र आदि देव उसी बकरे के कारण देवत्व को प्राप्त हुए. उसी बकरे को साधन बना कर अन्य ऋषि भी स्वर्ग आदि लोकों में पहुंचे. (१)
The goat was born from the heat of agni. He saw Prajapati, the creator of all animals, first of all. In the beginning of creation, Indra adi dev attained divinity due to the same goat. By making the same goat a means, other sages also reached heaven etc. (1)