हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 4.25.3

कांड 4 → सूक्त 25 → मंत्र 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 4)

अथर्ववेद: | सूक्त: 25
तव॑ व्र॒ते नि वि॑शन्ते॒ जना॑स॒स्त्वय्युदि॑ते॒ प्रेर॑ते चित्रभानो । यु॒वं वा॑यो सवि॒ता च॒ भुव॑नानि रक्षथ॒स्तौ नो॑ मुञ्चत॒मंह॑सः ॥ (३)
हे सविता! तुम से संबंधित कर्म में लोग नियम से लगे रहते हैं. हे विचित्र दीप्ति वाले सूर्य! तुम्हारे निकलने पर सभी लोग अपनेअपने काम में लग जाते हैं. तुम दोनों अर्थात्‌ वायु और सविता लोकों की रक्षा करते हो. तुम दोनों हमें पाप से बचाओ. (३)
O Savita! People are engaged in rules in karma related to you. O sun with strange brightness! When you leave, everyone gets involved in their own work. You protect both i.e. air and savita worlds. You both save us from sin. (3)