हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 4.26.6

कांड 4 → सूक्त 26 → मंत्र 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 4)

अथर्ववेद: | सूक्त: 26
ये की॒लाले॑न त॒र्पय॑थो॒ ये घृ॒तेन॒ याभ्या॑मृ॒ते न किं च॒न श॑क्नु॒वन्ति॑ । द्यावा॑पृथिवी॒ भव॑तं मे स्यो॒ने ते नो॑ मुञ्चत॒मंह॑सः ॥ (६)
जो द्यावा पृथ्वी अन्न एवं घृत के द्वारा समस्त विश्व को तृप्त करते हैं, जिन दोनों के बिना मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकते, वे द्यावा पृथ्वी मेरे लिए सुख का कारण बनें एवं मुझे पाप से छुड़ाएं. (६)
The earth which satisfies the whole world through food and ghee, without which human beings cannot do anything, may that dyava earth cause happiness for me and free me from sin. (6)