हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 4.8.1

कांड 4 → सूक्त 8 → मंत्र 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 4)

अथर्ववेद: | सूक्त: 8
भू॒तो भू॒तेषु॒ पय॒ आ द॑धाति॒ स भू॒ताना॒मधि॑पतिर्बभूव । तस्य॑ मृ॒त्युश्च॑रति राज॒सूयं॒ स राजा॒ रा॒ज्यमनु॑ मन्यतामि॒दम् ॥ (१)
अभिषेक द्वारा ऐश्वर्य प्राप्त करने वाला राजा ही समृद्ध जनपदों में भोज्य सामग्री पहुंचाता है. इस प्रकार वह प्राणियों का स्वामी हुआ. मृत्यु के देव यमराज दुष्टों को दंड दिलाने और सज्जनों का पालन करने के लिए ही राजा का राजसूय यज्ञ कराते हैं. वह राजा इस राज्य को तथा दुष्ट निग्रह और सज्जन परिपालन के कर्म को स्वीकार करे. (१)
The king who attains opulence through abhishek delivers food items to rich districts. Thus he became the master of creatures. Yamraj, the god of death, performs the king's Rajasuya Yagya only to punish the wicked and follow the gentlemen. That king should accept this kingdom and the deeds of evil exile and gentlemanly observance. (1)