हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 5.1.4

कांड 5 → सूक्त 1 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
प्र यदे॒ते प्र॑त॒रं पू॒र्व्यं गुः सदः॑सद आ॒तिष्ठ॑न्तो अजु॒र्यम् । क॒विः शु॒षस्य॑ मा॒तरा॑ रिहा॒णे जा॒म्यै धुर्यं॒ पति॑मेरयेथाम् ॥ (४)
जो उत्तम स्थान पर बैठ कर उस परमात्मा का चिंतन करते हैं, जो ब्राह्मण के हितैषी हैं तथा उसे प्राप्त कर चुके हैं, वे लोक परमात्मा की उपासना करके उस स्त्री को भी ईश्वर के दर्शन कराएं, जो प्रजा को अपनी बहन समझ कर उस का भार वहन करती है. (४)
Those who sit in the best place and think about that God, who is the well-wisher of the Brahmin and has attained it, they should worship the Lok Parmatma and make the woman also see God, who considers the people as her sister and bears the burden of it. (4)