अथर्ववेद (कांड 5)
रि॑श्यस्येव परीशा॒सं प॑रि॒कृत्य॒ परि॑ त्व॒चः । कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ देवा नि॒ष्कमि॑व॒ प्रति॑ मुञ्चत ॥ (३)
हे देवो! जो हमारी हिंसा करने वाले हैं, उन की त्वचा पर अपने आयुधों से घाव बना कर अपने आयुधों को अलग करो. लोग जिस प्रकार सोने के सिक्के अथवा आभूषण को ग्रहण करते हैं, उसी प्रकार कृत्या का निर्माण करने वाला उस को स्वीकार करे. (३)
O God! Separate your weapons by making wounds with your weapons on the skin of those who are going to do our violence. Just as people accept gold coins or ornaments, the creator of the work should accept it. (3)