अथर्ववेद (कांड 5)
पुनः॑ कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृते॑ हस्त॒गृह्य॒ परा॑ णय । स॑म॒क्षम॑स्मा॒ आ धे॑हि॒ यथा॑ कृत्या॒कृतं॒ हन॑त् ॥ (४)
हे ओषधि! तुम कृत्या का हाथ पकड़ कर उन के समीप ले जाओ, जिन्होंने इस का निर्माण किया है. उन के समीप पहुंची हुई कृत्या उन का विनाश कर देगी. (४)
O medicine! Take krita's hand and take it closer to those who built it. The act that has reached them will destroy them. (4)