हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 5.19.13

कांड 5 → सूक्त 19 → मंत्र 13 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 19
अश्रू॑णि॒ कृप॑माणस्य॒ यानि॑ जी॒तस्य॑ वावृ॒तुः । तं वै ब्र॑ह्मज्य ते दे॒वा अ॒पां भा॒गम॑धारयन् ॥ (१३)
हे ब्राह्मण को हानि पहुंचाने वाले पुरुष! कृपा के पात्र ब्राह्मणों के आंसुओं का जो जल होता है, वही जल देवों ने तेरे लिए निश्चित किया है. (१३)
O man who harms the Brahmin! The water of the tears of brahmins, the vessels of grace, the same water has been fixed for you by the gods. (13)