अथर्ववेद (कांड 5)
द्यावा॑पृथि॒वी दा॑तॄ॒णामधि॑पत्नी॒ स मा॑वतु । अ॒स्मिन्ब्रह्म॑ण्य॒स्मिन्कर्म॑ण्य॒स्यां पु॑रो॒धाया॑म॒स्यां प्र॑ति॒ष्ठाया॑म॒स्यां चित्त्या॑म॒स्यामाकू॑त्याम॒स्यामा॒शिष्य॒स्यां दे॒वहू॑त्यां॒ स्वाहा॑ ॥ (३)
द्यावा और पृथ्वी दाताओं के अधिपति हैं. वे इसे वेदोक्त, पौरोहित्य कर्म में, प्रतिष्ठा में, संकल्प, देवाहवान कर्म में तथा आशीर्वाद रूप कर्म में मेरी रक्षा करें. (३)
Dyawa and Earth are the overswamis of donors. May they protect me in Vedokta, Paurohitya Karma, Prestige, Resolve, Devavan Karma and Blessings. (3)