हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 5.27.8

कांड 5 → सूक्त 27 → मंत्र 8 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 5)

अथर्ववेद: | सूक्त: 27
उ॑रु॒व्यच॑सा॒ग्नेर्धाम्ना॒ पत्य॑माने । आ सु॒ष्वय॑न्ती यज॒ते उ॒पाके॑ उ॒षासा॒नक्तेमं य॒ज्ञम॑वतामध्व॒रं नः॑ ॥ (८)
महत्त्व वाले तथा गतिशील अग्नि देव इस यज्ञ में तेज को ऐश्वर्यपूर्ण एवं आहुति की दीप्ति का संपादन करते हैं. (८)
In this yajna, the important and dynamic Agni God edits the glory of glory and sacrifice. (8)